पिछले कुछ सालों में यह देखने में आया है कि हम कथनी और करनी अलग-अलग रखने के आदी हो गए हैं | हम अच्छा सोचते हैं, पर अच्छा करते नहीं | इससे हमारे नतीजे मन माफिक नहीं आते | अब समय आ गया है कि हम अच्छा सोचने के साथ साथ अपने कार्यों को भी उसी दिशा में रखें जिसमें हम वास्तव में जाना चाहते हैं | फिलहाल हर तरफ से विचार करने पर हमारी समस्या नंबर १ बढती आबादी ही है | हम अपनी आबादी पर काबू नहीं पा सके तो हमारी सारी कोशिशें मिट्टी में मिलती रहेंगी | सोचिये -
घोर अमानवीय और असामाजिक काम करने वालों को भी हम शान से जीने का हक दिए जा रहे हैं | लोग जानवरों की तरह इंसानों को मार रहे हैं और हम उन्हें माफ़ कर रहे हैं | लोग खाने पीने में ही नहीं, दवाओं तक में मिलावट कर रहे हैं, और शान से जी रहे हैं | लोग समाज और आदमियत का ताना-बाना छिन्न-भिन्न करके भी मज़े की ज़िन्दगी जी रहे हैं | क्या इन सब लोगों को अपने देश और अपने समाज पर बोझ मान कर इनसे छुटकारा पाने के उपाय नहीं सोचे जाने चाहियें ? आबादी का कुछ हिस्सा तो कम हो |
इतना ही नहीं, अमानुषिकता नर्सरी में ही ख़त्म की जानी चाहिए | हमारे जो बच्चे अपनी परीक्षाओं में नक़ल करते हैं, जो लोग कहीं भी प्रवेश के लिए लाइनें तोड़ कर पिछले दरवाजे से आते हैं, उनके अपराध भी छोटे नहीं हैं | शुरू से ही रोकने पड़ेंगे |