ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन कितना भी स्वादिष्ट या लज़ीज़ हो, जब तक उसे सलीके के साथ, आकर्षक बर्तनों में न पेश किया जाए, कम से कम व्यावसायिक जगत में हम सफल नहीं होंगे।
अब हम ये सब सलीके जान गए हैं। अब समय आ गया है कि हम भोजन बनाना भी सीखें!
ओह, ये भोजन भोजन क्या करना, हम सीधे सीधे कहें कि बात लेखन की है। भाषा से जुड़े लेखन की नहीं, साहित्यिक लेखन की! अब हमारे पास मेले - ठेलों की पर्याप्त व्यवस्था है, अब हम लिखें... लिखना सीखें!!!