आपको क्या लगता है? शोध शुरू करके उसे लगातार झटपट पूरी कर देने पर नतीजे ज़्यादा प्रामाणिक आते हैं या फिर उसे रुक- रुक कर बरसों तक चलाने पर ही सही बात निकल कर आ पाती है?
चलिए, हम इस बहस में नहीं पड़ते, मैं आपको बताता हूं कि इस अनुसंधान को मैंने वर्षों पहले शुरू किया था। शायद तब जब मैं कुल इक्कीस साल का था। अब मैं बहत्तर का हूं।
इस रिसर्च को मैंने कहीं दर्ज़ कराके अकादमिक स्वरूप तो नहीं दिया था लेकिन मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि मैंने इसे पूरी निष्ठा और गंभीरता से संपन्न किया और समय की परवाह न करते हुए अपने प्रश्नों की पड़ताल पर ही पूरा ध्यान केंद्रित किया। इसमें मुझे बहुत सारे लोगों का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहयोग भी मिला।
मेरे प्रश्न या उलझन क्या थे और मुझे क्या समाधान हासिल हुआ, इस पर हम अगले कुछ समय तक खुल कर चर्चा करेंगे। धन्यवाद।
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ReplyDeleteWelcome to my new post