इंसान से कभी-कभी यह शिकायत हो जाती है कि वह अपने जन्मदाताओं को भूल जाता है। लेकिन ऐसा कोई लांछन मॉरिशस की धरती पर नहीं लगता। इसका कारण यह है कि लगभग सत्तर लाख वर्ष पहले सागर के गर्भ से प्रस्फुटित जिस ज्वालामुखी ने मॉरिशस को जन्म दिया वह अभी भी उपेक्षित-अनदेखा नहीं है। वह मॉरिशस के पहाड़ों के बीच एक नम नखलिस्तान की तरह बदस्तूर कायम है।
विनम्रता के लिबास में वक्त को ओढ़े खड़ा ये पथरीला मंज़र उस इंसान के मुकाबिल चुपचाप खड़ा है जो अपने कुलजमा अस्सी-सौ सालों के जीवन में कई बार घमंड और उन्माद में चूर होता दिखाई देता रहा है।
पैदा होते वक्त सतरंगी मॉरिशस ने जो सात रंग देखे-दिखाए होंगे उनकी झलक सात रंगों की मिट्टी की शक्ल में आप आज भी बिखरी देख सकते हैं।
एक विशाल झरना दिन-रात आज भी वहां पानी बहाता देखा जाता है,जाने किसी दर्द की ओट में या फिर दुनिया को "जल तू जलाल तू" की नसीहत देने के क्रम में।
विनम्रता के लिबास में वक्त को ओढ़े खड़ा ये पथरीला मंज़र उस इंसान के मुकाबिल चुपचाप खड़ा है जो अपने कुलजमा अस्सी-सौ सालों के जीवन में कई बार घमंड और उन्माद में चूर होता दिखाई देता रहा है।
पैदा होते वक्त सतरंगी मॉरिशस ने जो सात रंग देखे-दिखाए होंगे उनकी झलक सात रंगों की मिट्टी की शक्ल में आप आज भी बिखरी देख सकते हैं।
एक विशाल झरना दिन-रात आज भी वहां पानी बहाता देखा जाता है,जाने किसी दर्द की ओट में या फिर दुनिया को "जल तू जलाल तू" की नसीहत देने के क्रम में।
वाकई। विनम्रता के लिबास में वक्त को ओढ़ना सबसे बड़ा हुनर है, चाहे इंसान का या क्षेत्र का।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteAap donon ka aabhaar!
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