Thursday, May 28, 2015

"केयर टेकर" के लिए कोई और अच्छा सा शब्द बताइये

मेरे एनजीओ का कार्यालय काफी दिनों तक खाली रहा। उस दौरान मैंने उस ऑफिस की देखभाल के लिए एक "केयरटेकर" रखा। एक दिन मैं ऑफिस आया तो मैंने वहां एक कैलेंडर ज़मीन पर पड़ा देखा। प्रस्तुत है मेरा और केयरटेकर का इस सन्दर्भ में हुआ वार्तालाप-
मैं- मैंने कल कहा था कि पड़ौस के घर से हथौड़ा मांग कर एक कील ठोक कर ये कैलेंडर टांग देना, तुम गए नहीं?
के- मैं गया था सर,उन्होंने कहा कि वे नहीं देंगे।
मैं- क्यों?
के-क्योंकि उनके पास है ही नहीं।
मैं-होता तो दे देते?
के-हाँ,वो तो कह रहे थे कि यदि ज़रूरी है तो हम गाँव से लाकर दें?
मैं-तो लिया क्यों नहीं?
के-मैंने पत्थर से कील ठोक ली।
मैं-तो कैलेंडर टांगा क्यों नहीं?
के-टांगा  था सर,वो हवा से गिर गया।
मैं-दोबारा टांग देते।
के-कैलेंडर पिछले साल का पुराना था सर।
मैं- तो इसे फेंको।
के-फेंक दिया था सर,उड़ कर फिर आ गया।
मैं-खिड़की बंद रखो, बाहर का कचरा कैसे आता है?
के-खिड़की का पल्ला ढीला है।
मैं-तो इसे ठीक करो।
के-करूँगा सर,इसके लिए हथौड़ा चाहिए।
मैं- ओके,बी क्विक।  
   

Saturday, May 9, 2015

निजी या सार्वजनिक ?

इस कशमकश से लगभग हर युवा कभी न कभी गुज़रता है कि वह अपने कैरियर के लिए निजी क्षेत्र को चुने, या सार्वजनिक। मतलब नौकरी प्राइवेट हो या सरकारी।
एक कष्टकारक बात ये है कि भारत में बहुत कम युवाओं को ही अपना क्षेत्र चुन पाने का यह अवसर मिल पाता है। अधिकांश को तो अपनी नैया हवा के रुख और उपलब्ध मौकों को देख कर ही खेनी पड़ती है। लेकिन फिर भी आपको ये पता होना चाहिए कि आप जिस कल के "सपने" देखें उसकी झोली में क्या मीठा है, क्या खट्टा और क्या तीखा?
यदि आप कोई व्यवसाय न करके नौकरी की ही तलाश में हैं, तो जानिए कि प्राइवेट और सरकारी, दोनों ही तरह के काम में कुछ अच्छाइयाँ हैं।
प्राइवेट नौकरी में आपकी योग्यताओं को तत्काल पहचानने वाला 'लिटमस टेस्ट' पल-पल पर आपके लिए उपलब्ध है।
सरकारी नौकरी में आपकी कमियों को ढूंढने वालों को लम्बे-लम्बे टेस्ट देने होंगे।              

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

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