Monday, June 2, 2014

आइस क्रीम से ज़्यादा ठंडी,कचौरियों से ज़्यादा गर्म यादें!

मेरी कहानी "चिड़िया अपनी शर्तों पर झंझावात चाहती थी" में मैंने एक ज़ेड श्रेणी सुरक्षा-प्राप्त गवर्नर के भाषण का ज़िक़्र किया है।
कहानी में नहीं, बल्कि हकीकत में इस भाषण के बाद हुए भोज में मैंने एक ऐसे नेता के साथ एक ही मेज़ पर खाना खाया जिनकी आवाज़ से आइसक्रीम खाते हुए भाप और गर्मागर्म कचौड़ियाँ खाते हुए बर्फ़ गिर रही थी। वे ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ उफ़न रहे थे, जो चौबीस घंटे बंदूक धारियों के साये में चलते हैं। मैं उनके साहस को रक्तचाप के रोगी के चटनी खाने की तरह डरते-डरते खा रहा था।
वे तब राज्य विधानसभा में विपक्ष में थे।  बात मुंबई की है।
आज उनके उस साहस और हिम्मत का पटाक्षेप सड़क पर किसी दुर्घटना ने कर दिया।  मेरे पास तमाम दूसरे लोगों की तरह एक ही विकल्प है- मैं श्री गोपीनाथ मुण्डे को श्रद्धांजलि अर्पित करूँ !  
          

1 comment:

  1. Aapka Abhaar, vaise is durghatna me utkrishtata kahan ho sakti hai?

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

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