Monday, February 28, 2011

इसमें अमीरी क्या करेगी?

चलिए, अब मैं बात करता हूँ कुछ उन बातों की जिनमे अमेरिका बहुत आगे है। इसकी सबसे बड़ी, या कहिये बड़ी खूबियों में से एक, यह है कि यहाँ आपको एक इंच भी लावारिस भूमि नहीं मिलेगी। अर्थात ऐसी कोई जगह नहीं है जिसे किसी भी इन्सान की देखरेख या ध्यान न मिल रहा हो।यहाँ की लैंड स्केपिंग इतनी शालीन है कि हर जगह किसी न किसी की संवारी हुई नज़र आती है। किसी की लापरवाही की शिकार जगह आपको यहाँ ढूंढें से भी नहीं मिलेगी। मेरे भारतीय मित्र मुझे क्षमा करें तो मैं कहूँगा कि भारत के शहरों में हम ऐसी जगह मुश्किल से ही पाते हैं जहाँ किसी ने थूक न रखा हो,या नाक न सिनक रखी हो या फिर आसपास कोई व्यक्ति सार्वजनिक रूप से खड़ा पेशाब न कर रहा हो। सड़कों पर गन्दगी और घिनौना कचरा होना और होते रहना तो आम बात है। मेरा मकसद किसी भी तरह अपने देश की तौहीन करना नहीं है,मगर सच को सच न कहने से भी तो बात नहीं बनेगी ।हमने अपना कचरा-प्रबंधन तो एक तरह से बिलकुल अस्त-व्यस्त कर लिया है। जो लोग बरसों से यह काम कर रहे थे उन्हें सामाजिक उत्थान के नाम पर अन्यत्र लगा दिया है किन्तु उनका विकल्प कौन और क्या होगा इस पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया। जब की अमेरिका में कचरा उठाने वाले भी अपनी डिग्निटी को बनाये रख कर पूरी गंभीरता व निष्ठा से यह काम कर रहे हैं। वे बहुतायत में मशीनों का प्रयोग भी कर रहे हैं। लेकिन वे मशीने कतई ऐसी नहीं हैं जो भारत इस्तेमाल न कर सके। बशर्ते उनकी खरीद में उच्च -स्तरीय घोटाले न हों।
अपनी और अपने परिवेश की गन्दगी दूर करना कोई अपराध या गिरा हुआ काम नहीं है। अमेरिका यह नसीहत हमें भली-भांति देता है।

Sunday, February 27, 2011

अमेरिका जिसे भारतीय लोग अमरीका के नाम से जानते हैं

भारत वासियों के मन में यह बात डाली जाती है कि अमेरिका एक पूंजीवादी देश है। मुझे लगता है कि यह अवधारणा बहुत पुरानी और सीमित है।यह बताइए कि आज पूंजीवादी कौन सा देश नहीं है?बल्कि अब तो वह दौर है कि देश ही नहीं, व्यक्ति-मात्र ही पूंजीवादी है। यदि कोई पूंजीवादी नहीं है तो वह केवल सड़क पर मौत की प्रतीक्षा में पड़ा भिखारी है जिसकी बुझती आँखों में केवल यह आस है कि कोई आता-जाता उसके सामने ज़रा सी ' पूँजी ' डाल दे तो वह मरने से बच जाये, चाहे कुछ देर के लिए ही सही। देश, चाहे वह कोई भी हो दिन-रात इस उधेड़बुन में है कि येन-केन-प्रकारेण उसकी पूँजी पहले से अधिक हो जाये और उसका ' विकास ' हो। यदि आपको यह बात सही लगती है तो ' पूंजीवादी ' शब्द को कड़वा शब्द मत समझिये।
कहा जाता है कि अमरीका दुनिया में अपना वर्चस्व जमाना चाहता है। पहली बात तो यह, कि वर्चस्व ज़माने से नहीं, बल्कि उसे कमतरों द्वारा स्वीकार करने से जमता है। रूस ने भी कभी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बनने की चाहत रखी थी।दूसरी बात, एक दूसरे पर वर्चस्व ज़माने की चेष्टा के बिना ' विकास ' की कल्पना भी नहीं की जा सकती। खिलाड़ी अपने से ' कम ' को परास्त कर ही बड़ा बनता है। व्यक्ति अपने से हीन को देख कर ही श्रेष्ठ होने का भाव पाता है। यह एक स्वाभाविक ' रेस ' है, जो दुनिया की बेहतरी के लिए ज़रूरी है।
हम क्यों सर्वश्रेष्ठ को सम्मान देने में कंजूसी करें ?

Saturday, February 26, 2011

बदलाव के लिए

पिछले कुछ दिनों से मैं अपनी एक लम्बी कविता - रक्कासा सी नाचे दिल्ली आपको सुना रहा था। यह कविता आज से कई वर्ष पहले लिखी गयी थी। हाँ,इसका अंत करते-करते मैंने आज की कुछ पंक्तिया भी जोड़ दीं।यह न तो किसी दुर्भावना से लिखी गयी थी और ना ही किसी पूर्वाग्रह से। एक दिन मैं अपने कुछ मित्रों के साथ रात को सड़क पर घूम रहा था। घूमते-घूमते इस बात पर चर्चा होने लगी कि किस तरह बच्चन जी ने मधुशाला लिख दी। केवल मदिरा की बात करते-करते वे ज़माने के बारे में क्या-क्या कह गए। बस, हम में से कुछ मित्रों ने भी ठान लिया कि हम भी ऐसा ही कोई प्रयास करके देखेंगे। सभी मित्र थोड़ा-बहुत लिखने-पढने से तो जुड़े ही थे। किसी ने चाय को अपना विषय चुना,तो किसी ने पान की दुकान को।मैंने दिल्ली शहर को ही चुन लिया, क्योंकि मैं पिछले कई साल से दिल्ली में रह रहा था। और बस-हो गयी रक्कासा सी नाचे दिल्लीशुरू।
अब पिछले कुछ समय से मेरा मन कह रहा है कि मैं अमेरिका के बारे में कुछ लिखूं। यहाँ कुछ बातें मैं आपको और कहना चाहूँगा-
1अपने हर प्लान को मैं एक पूर्वघोषित समय में पूरा कर सकूं यह कोई आवश्यक नहीं।
२मुझे समय-समय पर अमेरिका के बारे में लोगों का जो द्रष्टिकोण सुनने-पढने को मिलता रहा है मैं उसे किसी कसौटी पर उतारने की कोई कोशिश नहीं करूँगा,बल्कि मैं वही लिखूंगा जो मेरी अपनी सोच होगी ।

Friday, February 25, 2011

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 14

दिल्ली तो खेवनहार मित्र तेरी नैया की, दे न दगा
दिल्ली की लुटिया डूब गयी तो किस की दुम पे झूलेगा
तू बेशक अन्तरिक्ष में उड़ ,पर कदम रहें इस धरती पर
वो सैरगाह हो सकती है ,पर घर ये ही होगा दिल्ली
हर पल तेरा पानीपत है,हर क्षण तेरा जैसे झाँसी
हर घडी तेरी कुरुक्षेत्र समझ,हर लम्हा तेरा है प्लासी
हिंसा-हत्या से लाल हुई रोती है भारत की माटी
तू झूम-झूम कर घाट-घाट,रक्कासा सी नाचे दिल्ली
तू नंगों की लज्जा से डर ,भूखों के दिल की आह न ले
बेकारों की जो फौज खड़ी उनके सपनों की भी सुधि ले
अपनी करनी के फल तुझको करते तो होंगे कुछ उदास
आखिर तू भी है दिल वाली , कुछ तो डरती होगी दिल्ली
दिल्ली तेरे देवालय में बुत बन कर है इतिहास खड़ा
ये जुगनू राह दिखायेंगे तेरा जो इन पर ध्यान पड़ा
राजा तो होते मिट्टी के ,मिट जाते हैं वो वक्त ढले
फानी दुनिया में रह जातीं कर्मों की गाथाएं दिल्ली

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 13

फुटपाथों पर जो बड़े हुए , अधनंगे-अधभूखे चेहरे
वे दिख ना पाते हैं इसको ,हैं कहाँ बेचारे पड़े हुए
इस शुतुरमुर्ग सी दिल्ली को अब ' दर्शन दूर ' सहज लगता
छाती पर रिसते ज़ख्मों को अब देख नहीं पाती दिल्ली
चूसा है खून गरीबों का जिन आदमखोरों ने तमाम
उनके कुत्तों को टीवी पर प्रोटीन खिलाती सुबह शाम
ये भारत को ना देख सकी भारत ना छू पाया दिल्ली
दिल्ली ने दुनिया देखी है ,दुनिया ने देखी है दिल्ली
कुटिया में जो खोई सूई बुढिया जा गलियों में ढूंढें
भारत के दुखड़ों का इलाज दिल्ली परदेसों में ढूंढें
दिल्ली को है सबसे प्यारा 'वसुधा-कुटुम्बकम' का नारा
बस इसी वजह से आये दिन अम्बर में दिखती है दिल्ली
जब से टीवी संग आँख लड़ी दिल्ली के सब रंग-ढंग बदले
अब सत्ता और सियासत के फ़िल्मी ढंग अपनाती दिल्ली
तू मेरे आँगन धमक थिरक, में तेरे चौबारे नाचूं
नित उछल-उछल कर खोज रही 'संस्कृति 'को दीवानी दिल्ली

Thursday, February 24, 2011

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 12

जब वोटों के दिन आते हैं दिल्ली खा जाती है चंदा
फिर सूद-मुनाफाखोरों का बरसों तक चलता है धंधा
नेता हो जाते शेर सभी , जनता बनती भीगी-बिल्ली
तांडव होता महंगाई का, ता-ता-तत-थई करती दिल्ली
ये सबका मोल लगाती है लिख देगी तेरा भी लेखा
तू चम्पी कर , पद-रज लेले फिर नाम-मान कुछ भी लेजा
हों मौन तो शेरों-चीतों को परिवेश खुला देती दिल्ली
कोई विपक्ष में बोले तो नज़रों से दूर करे दिल्ली
बिल्ली पर कह कर वार करे,शक है चूहों को खाने का
पर ढूंढ न पाए ये सबूत आदम-खोरों के कर्मों का
आरोप लगें पर हों न सिद्ध, तू कुछ भी कर बस उजला रह
गन्दगी नहीं बर्दाश्त इसे है पर्यावरण-प्रिय दिल्ली
तू डाल-डाल हम पात-पात ,हैं इस से भी कहने वाले
जब सवासेर मिल जाते हैं आता है ऊँट पहाड़ तले
कुछ ऐसे भी हैं चिड़ीमार दिल्ली से ही धोखा करते
मदिरा-कन्या-चांदी पर ये देने की सोच रहे दिल्ली

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 11

ये जयललिता का मधुर-स्वप्न, है माया की मंजिल दिल्ली
ये सुषमा के सपनों का घर, ये ममता का साहिल दिल्ली
ऑफिस ये जया भादुरी का , वैजंतीमाला का दफ्तर
ये जया प्रदा की कर्मभूमि ,ये हेमा की ' धन्नो ' दिल्ली
ये प्रतिभा देवी की प्रतिभा, ये मीत अम्बिका सोनी की
शर्मीला का ये अमरप्रेम,ये गीत लता का है दिल्ली
क्या नगर ज़नाना है दिल्ली, लिल्लाह जवानी शीला की
ये शहर खानदानी प्यारा,क्या खूब सोनिया की दिल्ली
ये तीर्थ राजनेताओं की ,बस्ती सोये अरमानों की
चारों धामों से श्रेष्ठ धाम , ये कुर्सी के दीवानों की
दिल्ली है मित्र दलालों की , दिल्ली धरती है लालों की
दिल्ली में सब नेता होते, दिल्ली है खूब कमालों की
पश्चिम के फैशन भी पीछे इस दिल्ली की दिलबाज़ी से
कम से कम वस्त्रों में काया झलकाना अब इस से सीखे
फैशन वालों की पटरानी , श्रंगार-प्रियों की ठकुरानी
ज्यों इन्द्र सभा में इन्द्राणी, घोटालों की रानी दिल्ली

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 10

हर पोथी-पतरे की किस्मत लिखता है केवल एक नाम
अभिकरण,अधिकरण,प्राधिकरण,कहने को हैं सब ताम-झाम
दिल्ली है अबुल-फज़ल जैसे गणितज्ञों की नगरी वैसे
सब भूल गयी अब गिनती है बस डेढ़ नाम केवल दिल्ली
घूमे सब सरकारी अफसर दिन भर कारों में सरकारी
फिर बेदम धुएं से होती दिल्ली ' पर्दूषण ' की मारी
है रखती कभी उधार नहीं संग चुकता कर देती दिल्ली
सबको गंगाजी साफ करें गंगा को साफ करे दिल्ली
वर्दी की देख-रेख में अब, दुनिया है जिस्म-फरोशी की
हैं झिलमिल चौक चांदनी के पर तमस भरी किस्मत इनकी
नारी-शुचिता की सरे आम है यहाँ तिजारत अब होती
जमना के पावन तीर बसी मीना-बाज़ारों की दिल्ली
रखवाला है अब अस्मत का ,इन बहनों की ,ऊपरवाला
हाँ,हर्जाना कुछ नोटों का चाहे तो ले जाये बाला
सीता-अनुसुइया-सावित्री जूडो-कुंगफू क्यों सीख रहीं
लगता है खतरा देख रही इस नयी सदी में कुछ दिल्ली

Wednesday, February 23, 2011

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 9

घर बैठे ऊब बोरियत सब दिल्ली अब दूर करेगी लो
ये पॉप सुनो झूमो-थिरको रामा-कृष्णा के बैले लो
डिस्को-मेलौडी-जैज़ ट्विस्ट इसके मन भाता ब्रेकडांस
घूमर-भंगड़ा-गरबा भूली अच्छी आज़ाद हुई दिल्ली
आज़ादी के दीवानों को ये ढूढ़-ढूंढ कर लाती है
ज़ख्मों पर नमक छिड़कने को अंग्रेजी गीत सुनाती है
सम्मान तिरंगा खुली साँस जिन लोगों ने है इसे दिया
बदले में देती है उनको दो मिनट मौन बस ये दिल्ली
सबको अब ऊर्जा देती है उजली सी टोपी खद्दर की
चरखा रहता तस्वीरों में सब बात है अपने मुकद्दर की
आ बैल चलें अब खेतों में ,भूखी ना सोवे ये दिल्ली
बोयें विश्वास उगायें छल, हम-तुम भी हो जाएँ दिल्ली
दिल्ली मंडी है मेलों की सबके कर्मों को बेचेगी
फेंकेगी कीचड़ में पत्थर और दामन अपना खेंचेगी
पहले दे देगी मात तुझे पीछे शतरंज बिछाएगी
निगलेगी सात नीतियां तब ' पॉलिसी 'कहेगी एक दिल्ली

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 8

ये शाहजहाँ की दिल्ली है , है वास्तुकला की दीवानी
होटल - मधुबार बनाती है कर झुग्गी - बस्ती वीरानी
ये काल-चक्र के हस्ताक्षर अकबर-बाबर का दिल दिल्ली
खूंरेजी और अहिंसा-प्रिय ये नेहरु-गाँधी की दिल्ली
ये खून-सना बापू का घर , ये रक्त-सिक्त इंदिरा का घर
ये बारूदों से मज्जा की जब-तब होती टक्कर का घर
ये पंडों-पीर-पुजारी की चलती दूकानों की बस्ती
ये सारे भारत को अपने प्रवचन से भरमाती दिल्ली
पाना हो सांसों का परमिट, दिल्ली दफ्तर में अर्ज़ लगा
लेना है रोटी का कोटा , दिल्ली के आगे जुगत भिड़ा
गेंहू,जौ,चावल, प्याज़,नमक, पिज्जा-नूडल प्रायोजित हैं
अब कोंटीनेंटल छौंक रही , देसी घी में देखो दिल्ली
हो एक्सपोर्ट पानी बाहर इम्पोर्ट ब्रांडी-व्हिस्की का
प्याऊ से ज्यादा मधुशाला,ये धंधा खूब मुनाफे का
सौंधी मिट्टी के गर्भ बीच अब पत्थर का सपना बोती
शीशे के कक्षों में लिखती खेतों का अर्थशास्त्र दिल्ली

Sunday, February 20, 2011

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 7

होली हो , ईद ,चतुर्थी हो, चाहे हो ईस्टर - दीवाली
अब सारे जश्न मनाती है कन्धों पर लेकर दोनाली
है गिरजों की , हरद्वारों की, ये मस्जिद और गुरुद्वारों की
पर पूजन और अजानों को अब वक्त नहीं पाती दिल्ली
भूली उपदेश कर्म का अब, दिल्ली का कर्म हुआ ' कर्मा '
धर्मों की परिभाषा भूली , दिल्ली का धर्म हुआ ' धर्मा '
ईसा के , राम , रहीमा के ,नानक के कितने बन्दे हैं
हर पांच बरस में बन्दों की बस लिस्ट बनाती है दिल्ली
लक्ष्मी-दुर्गा की शमशीरों से कटे मिले माटी में सिर
वो पुनर्जन्म पा दिल्ली में शायद हैं सब उग आये फिर
दिल्ली ने छीने प्रिवीपर्स ,पहले तो सब राजाओं से
फिर गद्दी देकर मंत्री की ,सबको ले आयी फिर दिल्ली
लिखने वाले किस्मत इसकी , दुनिया भर के सारे दलाल
वो करें गला इसका हलाल, ये रही बेचारी उन्हें पाल
वो राजा तो रण में जाकर खुद लड़ते थे तलवारें ले
अब तो देखो लड़वाने में माहिर राजा लाई दिल्ली

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 6

ये दिल्ली नगरी ड्रामा की ,ये दिल्ली है लिटरेचर की
दर्पण समाज का लिटरेचर,दिल्ली दर्पण लिटरेचर की
पढनी हों गीता-रामायण तो दुर्लभ हैं,ढूंढो भाई
'पीले-शास्त्रों ' को गली-गली उपलब्ध कराती है दिल्ली
उनके पोथे दीमक चाटे जो खून-पसीने से लिखते
पर अभिनन्दन उनके होते जिनके पग मद डगमग होते
सम्मान-हिंडोला झूल रहे जो इसकी चरण-चाकरी कर
है उन पर इसका वरद-हस्त उनकी सौ माफ़ करे दिल्ली
अपनी ये मथुरा-मक्का है,ये काशी है ये है काबा
चालीसों और संग होंगे ,है दिल्ली एक अलीबाबा
भीतर हों राम-कृष्ण-विष्णु है कोई फर्क नहीं प्यारे
मंदिर होते इकसार सभी जो भी बनवाती है दिल्ली
पहले देवों की शान और थे सुरा लगाते होठों से
अब देवगणों के प्रायोजक 'थम्स-अप 'बूते पर नोटों के
बिरला की छत्तर-छाया में, हे नमो-नमो नारायण तुम ?
मंदिर को बिरला बनवाते , बिरला को बनवाती दिल्ली

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 5

चम्बल की घाटी छूट गयी अब यहीं बने कोठी-बंगले
सर को 'विश' करने जायेगा तो सदा रहेंगे भाग्य खुले
गांजा-दारू-स्मैक-चरस अब बच्चे-बच्चे को भाते
होकर मदमस्त नशे में ये देखो है झूम रही दिल्ली
स्मगलिंग-मर्डर-करचोरी में होते डिप्लोमा-डिग्री
और हर डिग्री-डिप्लोमा की बस ले-देकर होती बिक्री
त्रेता-द्वापर-सतयुग बीते ,वैदिक युग से छुट्टी मिल ली
कलियुग में ठाट-बाटसे अब आनंद मनाती है दिल्ली
अब दूर नहीं वो दिन भी जब 'मर्डर' के होंगे विद्यालय
रिश्वतखोरी-आयुक्त भवन और भ्रष्टाचार-निदेशालय
ये भ्रष्ट नहीं वो भ्रष्ट नहीं बस भ्रष्टों जैसा दिखता है
अब आये दिन ऐसी बातें संसद में करती है दिल्ली
चाहे जैसा हो चाल- चलन, हो पंजों -दांतों पर सुर्खी
जो वोटों के अंडे देती वो 'माननीय' होती मुर्गी
दिल्ली में राजनीति की यों, है बन्दर-बाँट यहाँ होती
रख लेती केवल राज-राज नैतिकता दे देती दिल्ली

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 4

है मंत्र छिपा मैकॉले का इस जंतर-मंतर में अब तक
हैं वायसराय,गवर्नर,सर ,जिंदा सब रूहों में अब तक
वोटों के मौसम में घूमे ये गाँव-गाँव कह राम-राम
फिर पांच बरस तक करती है बस 'हाय-हेलो' न्यारी दिल्ली
भारत का द्वार कहे कोई तो लाज उसे अब आती है
इण्डिया गेट की रौनक ही दिल्ली के मन को भाती है
जिंदा लोगों की बस्ती तो कहलाती ' प्लेस ' बहारों की
मरघट हैं सारे घाट यहाँ ,है फूल चढ़ाती अब दिल्ली
भाषण देने को आता है ये धूल उड़ाता मौसम जब
जनता को ढकती बंदूकें मिट्टी में मिल जाता है अदब
कोई हो परेशान कहता,ये दिल्ली ऊँचा सुनती है
कोई डरता,कानाफूसी भी सुन लेती है सब दिल्ली
काले धन का है धवल रूप दिल्ली में रुतबा भारी है
नेता-बस्ती में अमन-चैन नुक्कड़ पर मारा-मारी है
दिल्ली के संत-महंतों में है मोक्ष छिपा भारत का अब
पलकें झपकाता है भारत जब होठ हिलाती है दिल्ली

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 3

दिल्ली ने जो बचपन पाले, नेता-अफसर बन बैठे सब
अंग्रेजों की माला जप कर हैं भारत-भाग्य-विधाता अब
गावों -कस्बों के बचपन जो पढ़ते पेड़ों की छाँव तले
उनकी किस्मत में कलम कशी,बस लिखती रही सदा दिल्ली
शिक्षा के मानदंड कहकर 'बदलेंगे ये हैं सड़े गले'
ये पीट रही है ज़ोरों से जो ढोल विदेशी पड़ा गले
पंद्रह बरसों तक विद्यालय में पढ़ा-लिखा सब धूल मिला
बस थर्टी डेज़ के 'लेसन 'में सब सिखला देगी अब दिल्ली
दिल्ली की बरसी पर आओ तुम फूल चढाने को यारो
भाषण सुनने को संग लाओ अब अनुवादों के तुम ब्यूरो
हो बरसी चाहे पुण्यतिथि तुम दिल्ली दर्शन को आना
हर शांतिदूत की बरसी पर ये कर्फ्यू हटवाती दिल्ली
होता है स्वागत भव्य सदा आये दिन नृप-सम्राटों का
अंग्रेजी में स्वागत भाषण,अंग्रेजी में बोले टाटा
करने को कायम अमन-चैन बुलवाती विश्व-फरिश्तों को
फिर बुलट-प्रूफ में सैर-सपाटे करवाती प्यारी दिल्ली

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 2

बंगलों ने भ्रष्टाचार किया,सीना ताने हैं खड़े हुए
ली कोठी ने जम कर रिश्वत, तब बाग-बगीचे बड़े हुए
सपनों में बसता वायुयान,ख़्वाबों में मोटर दिखती है
जागी आँखों की वेला में पदयात्रा करती है दिल्ली
वादे करने का आता है,बस पांच बरस में मौसम अब
फिर खाने की ऋतु रहती है,डर कर हैं अदब बजाते सब
दो दानों का अनुदान करे तो दिल्ली 'शो' करवाती है
पर चाल करोड़ों लाखों की चुप होकर 'पास' करे दिल्ली
कहना मत कोई लाल किला,दिल्ली के होठों को यारो
तुम तो लिप-स्टिक भारत की,ओ रेड-फोर्ट की दीवारो
गुलमोहर नाम तो अच्छा है,पर उतनी महक नहीं इसमें
ये तब ही लुत्फ़ उठाती है,जब ' मेफेयर ' कहती दिल्ली
तुम गौतम गाँधी को जिंदा,जो नामों में चाहो रखना
हो जाते हैं ' एमजी ''जीबी 'सड़कों के नाम नहीं रखना
तेरे होंगे गलियां-कूंचे,इसके तो सब एवेन्यू हैं
सरणी-विहार तेरे होंगे,है एन्क्लेव रखती दिल्ली

रक्कासा सी नाचे दिल्ली -1

ये ऐबक का रंगीन शहर,ऊँची मीनारों की दिल्ली
ये शाह ज़फर का नूरे-नज़र, शंकित किरदारों की दिल्ली
ये शेर शाह की नगरी है, शासन-प्रबंध निष्णात दक्ष
है तबसे अब तक बनी हुयी,सत्ता-प्रपंच में सिद्ध-हस्त
कुर्सी-कुर्सी पसरे फैले, ये तुगलक से सुल्तानों की
दफ्तर-दफ्तर चाणक्य-नुमा जजमानों की नगरी दिल्ली
कन्धों पर काला कोट पड़ा,जो गोरों ने सिलवाया था
आँखों पर है काला चश्मा,लन्दन ने भेंट चढ़ाया था
इस जहाँगीर की नगरी में अब देखो न्याय-धर्म कैसा
दादा ने पत्थर मारा था,पोते को सम्मन दे दिल्ली
ये कोट नहीं छूटे प्यारे, भागे प्राणी की लंगोटी है
ये धर्मराज की धरती पर अब दुर्योधन की रोटी है
पर ऐसी बात नहीं कहना,जो नींद उड़ा दे दिल्ली की
कोई अभियोग लगाना मत,आयोग बना देगी दिल्ली

एक और कविता

मेरी एक और लम्बी कविता - रक्कासा सी नाचे दिल्ली जल्दी ही आप पढेंगे। दिल्ली में लगभग ८ साल रहने के दौरान मैंने देखा कि इस शहर में कुछ है जो इसे औरों से तो अलग करता ही है,इसे हर पल अपने-आप से भी अलग करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह शहर पल-पल रंग बदलता है। यह बनता है,यह बिगड़ता है,यह फिर बनता है।
दिल्ली की गलियों में मानसिक पर्यटन का अपना ही मज़ा है। तो लीजिये सुनिए-एक नई सदी में पुराने ऐतिहासिक शहर के धमाल की दिलचस्प दास्ताँ- "रक्कासा सी नाचे दिल्ली"
गिल्ली डंडे की बाज़ी में अब 'कॉमन-वेल्थ' शॉट जड़ती
दिल्ली अब छोड़ बीसवीं को,इक्कीस सदी में लो बढ़ती
ऊँची मीनारों की दिल्ली,ऊँचे किरदारों की दिल्ली
ऊँची जनता ,ऊँचे नेता ,ऊँचे सरदारों की दिल्ली

Saturday, February 19, 2011

एक ही पेड़ पर लगे सुख-दुःख

पिछले सप्ताह उड़ीसा जाने का अवसर मिला। जयपुर से एक ट्रेन सीधी भगवान जगन्नाथ की नगरी पुरी जाती है।इस में दो रात और एक पूरे दिन का लम्बा सफ़र कर के तीसरे दिन सुबह ढेंकनाल पहुंचा। यह छोटा सा जिला भुवनेश्वर और कटक से पहले पड़ता है। भुवनेश्वर तो उड़ीसा का तेज़ी से आधुनिक होता शहर है।मुझे यह गोहाटी की तरह लगता है। महानगरीय चहल-पहल को रफ़्तार से आत्मसात करता हुआ।कटक में कोलकाता की गंध और झलक मिलती है। ऐसा लगता हैमानो छोटा कोलकाता ही हो। एक खास तरह की संस्कृति और पारम्परिकता को लिए हुए।
ढेंकनाल हरा-भरा और शांत सा शहर है।पहली नज़र में आपको ऐसा लगेगा कि यह बहुत छोटी सी ऐसी जगह होगी,जहाँ आधुनिक सुख-सुविधाएँ शायद ही हों। लेकिन खोज-टहल से आप पाएंगे कि यह भी विकास की गति में तेज़ी से शामिल है। यहाँ रह कर आपको हरियाली,ख़ामोशी और सुविधाओं की त्रयी के दर्शन एक साथ होते हैं। मेरा मन यहाँ बार-बार आने का होता है।
आप सोच रहे होंगे ,मैंने शीर्षक में किस दुःख का जिक्र किया है। दरअसल यह दुःख आपको किसी एक शहर या प्रान्त में नहीं मिलता। यह तो सारे देश में बिखरा पड़ा है। मैंने राजस्थान,उत्तर-प्रदेश,मध्य-प्रदेश,छत्तीसगढ़,महाराष्ट्र और उड़ीसा से गुज़रते हुए देखा कि हमारे सारे शहर,चाहे वे बड़े हों या छोटे, बुरी तरह पौलिथिन से अटे पड़े हैं।गन्दी और बदनुमा थैलियाँ शहरों को चारों तरफ से घेरे हुए हैं। कहीं ऐसा न हो कि आनेवाली दुनिया के लोग हमारी सभ्यता को इन्ही थैलियों में दफ़न देखें।

शेयर खाता खोल सजनियाँ-अंतिम भाग

हो सकता है शेयर तुझको,पल-दो-पल में अमीर करदे
ऐसा ना हो पर ये दौलत घायल तेरा ज़मीर कर दे
तुझ से दूर तुझे कर दे ये जैसे भी हो शेयर लेना।
काल कभी तुझसे भी पूछे कैसे तूने करी कमाई
भूखों की थाली में तूने मारा पत्थर सेंध लगाई
पाप तेरा कहलाये कल ये जैसे भी हो शेयर लेना।
दुनिया है बाज़ार निराला,इसमें गिरवी आस पड़ी है
कहीं दबा है चांदी-सोना कहीं किसी की प्यास पड़ी है
धन से मन का खेल छोड़ दे,जैसे भी हो शेयर लेना।
लेना ही है तो दुनिया में दीन-धरम में शेयर लेना
भूखे नंगे लाचारों पर दया-रहम में शेयर लेना
तू नेकी में शेयर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।

Thursday, February 10, 2011

थोड़ा सा ठहरना होगा

एक लम्बी कविता के २५ भाग आपने देखे। यह कविता अभी समाप्त नहीं है। लेकिन किसी लम्बी यात्रा पर निकलने से पहले ज़रा पीछे मुड कर देख लेने में कोई हर्ज़ नहीं है। यदि कोई साथ या पीछे आता दिख जाये तो ज़रा उसके चेहरे के भाव भांप लिए जाएँ।
असल में आज बात कहने का शायद एक ही तरीका रह गया है। बाकी तरीके लुप्तप्राय से हैं।वह तरीका यह है कि आप बात कहें। बात के आगे-पीछे,दायें-बाएं या ऊपर-नीचे कदमताल न करें।
एक ज़माना था कि जब यदि कोई कहता था कि मैं किस काबिल हूँ तो यह समझा जाता था कि वह बहुत काबिल है। जब किसी से कहा जाता था कि आप तो महान हैं,तब यह समझा जाता था कि उसे बेवकूफ बनाया जा रहा है। यह व्यंग्य होता था। अब व्यंग्य लुप्तप्राय है। अभिधा,लक्षणा और व्यंजना केवल हिंदी के विद्यार्थियों को बताई जाती हैं। और हिंदी के विद्यार्थी क्लास में आने की ज़रूरत ही नहीं समझते,क्योंकि वे लगभग नहीं के बराबर ही होते हैं।
ऐसे में बात कहने के तरीके भी मर रहे हैं। आज जब किसी से कहा जाता है -शेयर खाता खोल सजनियाँ,तो वह यही समझता या समझती है कि उसे वित्तीय सलाह या फाइनेंशियल ऐडवाइस दी जा रही है। क्योंकि पैसा तो येन-केन-प्रकारेण कमाना ही है। इसे कमाने की सलाह देना भला व्यंग्य या मजाक कैसे हो सकता है।
इस लिए गुज़ारिश है कि इस बात पर मत जाइये कि यह ख़ुशी से कहा जा रहा है या दुःख से,व्यंग्य से कहा जा रहा है या सपाट बयानी से, आप तो इस का आनंद लीजिये और कौड़ी-कौड़ी के लिए निगोड़ी ज़िन्दगी को दाव पर लगाने वालों की दाद दीजिये।
कमेन्ट कीजिये कि इसे बढ़ाएं या रोक दें?

Wednesday, February 9, 2011

शेयर खाता खोल सजनियाँ 25

ऐश्वर्या-अभिषेक की जोड़ी,देखो कितनी समझदार है
एक एक्टिंग करती रहती,दूजा लेता पुरस्कार है
शिक्षा इस पेयर से लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
वेल्थ अकेले ले जाते तो,वो भी रहते बड़ी शान से
"कॉमन-वेल्थ "कबड्डी खेले,कलमाड़ी जी गए काम से
सारा शेयर तू ही लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
कवियों की होती है हूटिंग,हीरो की चलती है शूटिंग
करते रहते मनमोहन जी,महंगाई पर जम कर मीटिंग
राजासी चीटिंग कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
शेयर होता धन की गुल्लक,बच्चा-बच्चा गुण गाता है
जिस जिगरे में बड़ी आग हो,वो ही बीडी सुलगाता है
इसका कश तू कसकर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।

शेयर खाता खोल सजनियाँ 24

घूम रहे हैं धूमकेतु सौ कब धरती को लग ले धक्का
कल ना जाने क्या हो जाये करले आज मुनाफा पक्का
चक्का जाम कराकर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
अब शीलायें बड़ी चपल हैं,तेरे हाथ कभी ना आनी
शेयर शेयर शेयर जप ले खो जाये ना कहीं जवानी
पाकर लेना-खोकर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
सोना तो चोरी हो जाता ऐसा खोटा काम न करना
हीरे-मोती-माणिक लेकर मुन्नी को बदनाम न करना
सोच समझ कर केयर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
राजनीति की इस बस्ती में रानी जाती राजा जाता
कट जाती हैं रोज़ पतंगें हाथ यहाँ बस मांजा आता
बेच पुरानी मोटर देना,जैसे भी हो शेयर लेना।

शेयर खाता खोल सजनियाँ 23

ये दुनिया विज्ञापन की है रोज़ नए विज्ञापन देखो
विज्ञापन में हीरोइन हो,तुम तो शेयर को ही देखो
विज्ञापन से शेयर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
होती जब सरकार निकम्मी,भ्रष्ट व्यवस्था तब होती है
केवल उछलें-कूदें शेयर बाकी चीजें सब सोती हैं
बैठ निठल्ले,सोकर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
गाँधीवादी अगर बना तो जीवन भर चरखा कातेगा
पूंजीवादी बन जा प्यारे चांदी की थाली चाटेगा
पूंजी की पूजा कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
टीवी में मल्टी-चैनल हैं मल्टी नेशन बना कंपनी
तू भी मल्टी-लखपति बन जा ऐसी कोई खोल कंपनी
दम कुबेर ही बन कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।

शेयर खाता खोल सजनियाँ 22

तेंदुलकर ने छक्के मारे सब रिकार्ड दुनिया के तोड़े
तोड़-फोड़ से तो अच्छा है तू पाई-पाई को जोड़े
तोड़ो नहीं जोड़कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
जिसने शेयर धाम न देखा रहा हमेशा अस्त-व्यस्त वो
कभी नहीं होगा वो कड़का चीज़ चुनेगा मस्त-मस्त जो
बढ़िया मस्त कलंदर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
अपनी ढपली आप बजाओ तो ना हिल पाता है पत्ता
शेयर से ही मिल पाती है मायावी होती है सत्ता
माया सी ले चेयर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
बुला विदेशी कंपनियों को सब देशी करवालो कारज
शेयर लूट मुनाफे में हो जैसे भी बनवालो कागज़
आज़ादी को देकर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।

शेयर खाता खोल सजनियाँ 21

राणा-वीर शिवाजी बन कर तारीखों में नाम मिलेगा
भाले-बरछी का क्या करना शेयर से तो दाम मिलेगा
सौदा सस्ता तू कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
अमरीका जो गया चाँद पर,जा मिट्टी-पत्थर ले आया
जो शेयर बाज़ार गया सो मोटी रकम साथ ले आया
फरक साफ है सुन कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
पूंजीवादी नहीं बना तो रूस हुआ यों टुकड़े-टुकड़े
पूंजी का अपमान न करता काहे को होते ये दुखड़े
लफड़े ये मत तू कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
पीटी उषा रही दौड़ती मैदानों में पदक बटोरे
जो दौड़ा शेयर के पीछे उसने धन से भरे कटोरे
नाम नहीं तू नकदी लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।

Tuesday, February 8, 2011

शेयर खाता खोल सजनियाँ 20

भरे तिजोरी भरती जाये बहता जाये धन का दरिया
जिस पर बांध कभी ना बनता शेयर है एक ऐसी नदिया
है ये सदा सरोवर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
असंतुष्ट जब दल में होते कुर्सी दूर खिसक जाती है
पर संतुष्ट सभी रहते हैं शेयर की जब बू आती है
कुर्सी का बीमा कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
मैदाने-जग में आया तो कदम ताल से क्या कतराना
सट्टा- आश्रम का बन जोगी रकम माल से क्या घबराना
बंद गठरिया छक कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
मनभावन सौगात अनोखी ये तो ऊपर की तनखा है
शीश नवा कर लेलो इसको ये प्रसाद "मनमोहन"का है
सरकारी है मेहर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।

शेयर खाता खोल सजनिया 19

पीर-फकीर-मौलवी-साधू अल्ला का दीदार करेंगे
हम-तुम तो पैसे के जोगी आओ दो के चार करेंगे
पैसा-पैसा चुन कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
छोड़ो मंदिर छोड़ो मस्जिद कौन भला जाये गिरजाघर
सत्ताघर में ही सत्ता है ,सट्टा घर में ही है ईश्वर
लक्ष्मी का पत्ता धर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
महानीन्द जाने कब आके भवसागर में नाव लगाले
मगर खुली हैं जब तक आँखे तब तक तो आ माल बनाले
सफल मनोरथ तू कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
घूँघट के पट खोलेगी तो सिर्फ पिया की झलक मिलेगी
शेयर खाता खोल सजनिया लाखों की कल खनक मिलेगी
दिखला पति को तेवर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।

Monday, February 7, 2011

शेयर खाता खोल सजनिया 18

झटका चाहे करे कसाई हलवा-खीर करे हलवाई
पर खाने को मिलता उसको जो शेयर से करे कमाई
भोजन मेज सजा कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
फ़ीस डाक्टर उस से लेता बढ़ जाता है जिसका फीवर
पर ब्रोकर जी देते उसको जिसका चढ़ जाता है शेयर
रखना दूर डाक्टर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।
फंसना हो तो पा लो चेयर हँसना हो तो जानी लीवर
रोता जिसके मन में हो डर ,मुस्काता जो ले ले शेयर
मत खाना अब ठोकर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।
काल का पहिया घूमे भैया बीच समंदर डूबे नैया
डूबे तो हम-तुम डूबेंगे बच जायेगा यहीं रुपैया
पुनर्जन्म में आ फिर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।

शेयर खाता खोल सजनिया 17

राजनीति में शेयर लेकर हीरो हो जाता है जीरो
पर शेयर में शेयर लेकर जीरो हो जाता है हीरो
है ये सबक समझ कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
सूरज निगला पवनपुत्र ने तीनो लोक हुआ अँधियारा
शेयर जब हर्षद ने निगला चारों ओर हुआ उजियारा
ऐसी जोत जगा कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
मरता कोई शेयर वाला समां बंधे तब मेले वाला
परिजन दुःख में भी पहनाते अर्थी को नोटों की माला
ऐसा गौरव मर कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
मर कर जब ऊपर जाता है जो प्राणी हो शेयर-धारी
अगवानी को यम खुद आये,स्वर्ग-व्यवस्था सब हो न्यारी
फिर क्यों ना ये फेवर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।

शेयर खाता खोल सजनिया 16

ना जाने क्यों इस शेयर को "अंश"कहें ये हिंदी वाले
तू तो "पूरा" शेयर कहना दंश सहें ना कहने वाले
हिंदी की चिंदी कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
कोर्ट वकीलों का है नाता खोट सुनारों के मन आता
वोट रुचे नेताजी को ही नोट मगर शेयर से आता
सबकी रूचि को तक कर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।
फूल खिलाओ मुरझाएंगे फल लाओ तो सड़ जायेंगे
पालो तोते उड़ जायेंगे शेयर लाओ बढ़ जायेंगे
ऐसी चीज़ खोज कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
शेयर भाग्य बदल देता है किस्मत तेरी गढ़े दलाली
सत्तापति बन कर बैठे हैं जाने कितने कुली-मवाली
तू भी सब दोहरा कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।

Sunday, February 6, 2011

शेयर खाता खोल सजनियाँ 15

बेटा तू भी शेयर लेना अम्मा तुम भी शेयर लेना
भाऊ तुम भी शेयर लेना,ताऊ तुम भी शेयर लेना
धन दौलत का लाकरलेना जैसे भी हो शेयर लेना।
बिन शेयर के जीवन रहता नीरस मोद-विहीन अधूरा
मधु मंगल मय शेयर पाकर ये समझो होता है पूरा
पूरा जोर लगा कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
इस दुनिया में बड़ा कठिन है वोट जुटा कर चेयर लेना
लेकिन भैया बड़ा सरल है नोट लगा कर शेयर लेना
चक्कर खूब चला कर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।
जीवन-रथ के इस पहिये पर रोक एक दिन काल लगाता
पर वो काल जयी हो जाता जो शेयर में माल लगाता
तू भी ताल लगा कर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।

शेयर खाता खोल सजनियाँ 14

ऐ पांडेजी शेयर लेना, भैया मिश्रा शेयर लेना
ओ लालाजी शेयर लेना, सुनो शाह जी शेयर लेना
सुब्रमण्यम शेयर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना। अ
पंडित जी तुम भी ले लेना खान साहब ना पीछे रहना
लहनासिंह तुम से भी कहना, फ्रेंड डिसूज़ा तुम भी लेना
मिलकर लेना लड़कर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।
बच्चे की ना फ़ीस गयी तो घर में भी पढ़ सकता है वो
पर शेयर का पेड़ लगाया, चाहे जब चढ़ सकता है वो
सब कुछ तौल-मोल कर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।
तुमतो खुद ही समझ दार हो अब ऐसों को क्या समझाना
ध्यान लगाना प्रभु में लेकिन सब पैसों को वहीँ लगाना
लेना ढोल बजाकर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।

शेयर खाता खोल सजनियाँ 13

शेयर बेनामी लो कोई ना जाने थैली में क्या है
रहें ढूँढते कर अधिकारी किस चोली के पीछे क्या है
थैली को धो-धो कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
अगर किसी से प्यार करो तो दिल अपना और प्रीत परायी
पर जो ये व्यापर करो तो तेरा शेयर तेरी कमाई
इस से प्रीत लगाकर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।
तिरछी गति सत्ता रथ की है फर्जी टेढ़ा प्यादा सीधा
पर इस धंधे में है जाता फर्जी सीधा,सीधा प्यादा
सीधे पन की मोहर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।
ईश्वर ने संसार बनाया केवट ने जल पार कराया
जोरू ने घर बार बनाया शेयर ने व्यापर बनाया
घर वाली से छिप कर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।

Friday, February 4, 2011

शेयर खाता खोल सजनियाँ 12

माना जीवन में आवश्यक ,करना थोड़ा धरम-करम है
पर ये धंधा भी तो भैया देखो कितना गरम-गरम है
धर्मो-करम समझ कर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।
सब्जी-मंडी होती प्यारी पर मछली-बाज़ार निराला
मार्केट तो ढेरों होते,पर शेयर बाज़ार निराला
इस मंडी में घुस कर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।
एक था राजा एक थी रानी दोनों मर गए ख़तम कहानी
शेयर की नैया जब तैरे नदिया कभी न सूखे पानी
शाश्वत कथा-ए-शेयर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।
जैसे महंगाई बढती है चढ़ती गुड्डी आसमान पर
शेयर भी ऐसे चढ़ता है जैसे लोटन चढ़े कबूतर
सोना-मस्त-कबूतर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।

शेयर खाता खोल सजनियाँ 11

इनकम तेरी अगर बढ़ी तो आ जायेंगे कर अधिकारी
रेशम पर खादी धर लेना कहलायेगा तू सुविचारी
भाषण खूब पिलाकर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।
अबके फागुन में बीबी के गाल अबीर-गुलाल लगाना
सच्ची उस से प्रीत निभाकर उसके नाम पे माल लगाना
शेयर है ये जेवर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।
बीमा का कीमा बन जाता माल तिजोरी में गल जाता
लेकिन शेयर में जो डाला सात पीढ़ियों को फल जाता
है ये बात बराबर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।
जीवन साथी जिसे बनाया उसको लेदो भैया शेयर
फिर देखो कैसी खिल जाती कर के देखो शैया शेयर
हनीमून से तेवर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।

शेयर खाता खोल सजनियाँ 10

दुनियां तो आनी-जानी है, माया-ममता सब फानी है
बोनस शेयर अगर मिला तो जीवन नैया तर जानी है
चाहे नाम डुबोकर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।
पब्लिक इशू कराके ओपन गुड की भेली बनी कंपनी
दौड़ रही मक्खी सी पब्लिक करके सबकी सुनी-अनसुनी
तू भी टांग अड़ाकर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।
रिश्ते में जैसे हो साली होंठों पे जैसे हो लाली
बस वैसे ही इस धंधे में माल-हलाल कमाल-दलाली
दे साली को लेकर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।
बेकारों को कार मिलेगी सड़क-छाप कोठी पा जाएँ
शेयर की अनुकम्पा हो तो भूखे भी रोटी पा जाएँ
भूखे लेना खाकर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।

Thursday, February 3, 2011

शेयर खाता खोल सजनियाँ 9

पक्षी मोर हमारा प्यारा राजनीति ही राष्ट्रधर्म है
शेर हमारा राष्ट्र-जानवर शेयर अपना राष्ट्र-कर्म है
राष्ट्र-कर्म में शेयर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
एक साल में एक दिवाली एक दिवस होली का आता
पर हर रोज़ दिवाली होती,अगर हाथ में शेयर आता
खुली लाटरी जाकर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।
जोड़-तोड़ में तुम लग जाओ जब भी पाओ लेलो इसको
ये नायाब सभी होते हैं, टाटा-बिरला-बाटा -टिस्को
फारम फ़ौरन भर कर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।
लक्ष्मी-मैया के साये में तेजड़िया सी तेज़ी आये
बिन शेयर कोई ना पूछे मंदड़िया सी सुस्ती छाये
सपने सात संजो कर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।

Wednesday, February 2, 2011

शेयरखाता खोल सजनियाँ 8

इस युग में जो शेयर पाता उसके होते साथी-संगी
वो ही कहलाता है जग में महावीर विक्रम बजरंगी
शेयर सुख है रेयर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
चाहे ना हों मुल्ला-काजी हो निकाह हो सकती शादी
शेयर हीन मिले जो शौहर तो बीबी की है बर्बादी
शेयर में ही मेहर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
ख़ास हिफाज़त इसकी करना,जीवन हो जाता है कारा
पेंट फटे तो सिल जाती है शेयर फटे लुटे जग सारा
जीवन में ये केयर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
सरकारों की मजबूती से भला कभी भी क्या पाओगे
शेयर की मजबूती देती मज़ा,इसी के गुण गाओगे
छक्के खूब छुड़ाकर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।

शेयर खाता खोल सजनियाँ 7

घर बैठा आराम नमामी आया दफ्तर काम नमामी
पर शेयर बाज़ार जो आया, दाम नमामि -नमामि-नमामी
पूरा शीश झुकाकर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।
जियरा धक्-धक् करे निगोड़ा, ज्यों-ज्यों भाव बताता टीवी
ज्यों-ज्यों चढ़ता जाता शेयर, त्यों-त्यों पाँव दबाती बीबी
होवे प्रेम अफेयर लेना, जैसे भी हो शेयर लेना।
देखा अजब अजूबा ऐसा, राव-रंक सब फेंके पैसा
लपके जिसको मिले धरोहर,क्यों सखि ईश्वर ना सखि शेयर
इस युग का ये ईश्वर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
शेयर हो सेवा करती है, रखैल हो चाहे पटरानी
भरा समंदर गोपी चंदर बोल मछरिया कितना पानी
पानी भरा सरोवर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।

शेयर खाता खोल सजनियाँ 6

चाहे बेटे को निज हाथों पड़े फूंकना चूल्हा-चौका
काली मोटी बहू मिले पर ब्लू-चिप वाला मैका
रोज़ हवाला तू कर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।
राम न जाते कैसे होता रावणवध का महा अफेयर
केकैई ना राजपाट में अगर भरत का लेती शेयर
करना कहीं अफेयर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।
पटना कलकत्ता में चाहे मुंबई दिल्ली में चुन लेना
तीनों लोकों किसी भाव भी पर कोई शेयर तुम लेना
गिरवी रखना जेवर लेना,जैसे भी हो शेयर लेना।
बकरे से बोटी पाओगे झटका चाहे करो हलाली
शेयर से रोटी पाओगे फ्रॉड करो या करो दलाली
किसी बड़े का फेवर लेना जैसे भी हो शेयर लेना।

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...